नज़रिन चलिए आज हम इस पोस्ट में हमारे कुछ नौज़वान भाइयो और बहनों के कुछ सवालों का जवाब देते हुए गुस्ल और वज़ू के टॉपिक को पूरा करते हैं। हमारे कुछ भाई इस्लामिक मालूमात ना होने की वजह से गुस्ल और वज़ू के दरमियाँ इस कदर परेशान और हतास हैं की उन्हें इस्लाम बहुत ही शख्त नियम और कायदो से बँधा हुआ लगता हैं या फिर उन्हें कुछ दीन के अलीम इस कदर एहतियाद करने का पहाड़ा पढ़ा देते हैं की बंदा खुद में इस कदर उलझ जाता हैं की उसे सहीं और गलत का अंदाजा भी नहीं लग पाता की वो क्या सहीं कर रहा हैं और क्या गलत।
सच तो ये हैं की इस्लाम जितना शख्त और उसूलो से भरा हुआ दिखता हैं उतना हैं नहीं इस्लाम में बहुत सी चीज़ो में हमें बहुत छूट दी गई हैं बहुत सारी चीज़ो हो हम पर आसान किया गया हैं और लाजमी हैं की इस्लाम बहुत आसान और सरल नियमों को लेकर चलता हैं बस हमारी नासमझियो की वजह से हमारे कुछ भाइयो और बहनों को ये बहुत ही कठिन लगता हैं।
चलिए पहले जानते हैं कि ग़ुस्ल क्या है?
ग़ुस्ल एक अरबी शब्द है जिसका मतलब पूरे शरीर को नहलाना अर्थात स्नान देना होता है। यदि कोई व्यक्ति अपनी
पाकीज़गी( पवित्रता या शुद्धता ) खो चुका है तो इस्लाम में उसे नमाज और दूसरे इस्लामिक कामों से पहले ग़ुस्ल करना जरूरी होता है। गुस्ल हर उस इंसान पर वाजिब है जो कि-
- प्राकृतिक मौत या अन्य किसी तरह से मर गया हो
- यौन संबंध या हमबिस्तरी कर चुका हो
- जिस लड़की या महिला का मासिक धर्म पूरा हो चुका हो
- वीर्य या मानी निकल जाने पर चाहे (वहां जानबूझकर हो या अनजाने पर) गुस्ल वाजिब हो जाता है
चलिए अब जानते हैं की वज़ू क्या है?
वजू एक अरबी शब्द हैं। वजू शरीर के भागों को धोने के लिए एक इस्लामिक प्रक्रिया है यहां छोटी मोटी नापाकी से पाक होने (शुद्धिकरण) का धार्मिक तरीका है। वजू की इस प्रक्रिया में हाथ, मुंह, नाक, बाजू, सिर और पाव को धोना शामिल होता है। इस्लाम में ग़ुस्ल की तरह वजू करना भी और बावजू रहना भी बहुत महत्त्व रखता है। इस्लाम में किसी भी व्यक्ति को धार्मिक कामों जैसे कि नमाज पढ़ना, फातेहा देना, कुरान पढ़ना और अन्य किसी कामों में शामिल होने से पहले वजू करना बहुत जरूरी है। गुस्ल के ठीक विपरीत वजू में यदि कोई व्यक्ति पहले से पाक(शुद्धया) हो तो उसे किसी भी धार्मिक कामों(जैसे कि नमाज पढ़ना, फातेहा देना, कुरान पढ़ना)को करने से पहले वजू करना जरूरी होता है। वजू वाज़िब होता है-
- पेशाब या शौचालय हो जाने पर
- पाद निकल जाने पर
- गहरी नींद सो जाने पर
- शरीर के किसी अंग से खून या पिप निकल आने पर वजू करना वाजिब हो जाता है।
चलिए अब हम अपने पहले सवाल पर आते हैं कि
बिना कपड़ों के नहाने से ग़ुस्ल और वजू होता है या नहीं? सबसे पहले मेरे प्यारे दोस्तों ये बात आप अपने दिल-o-दिमाग़ से निकल दो की आप अगर बिना कपड़ो के नहाते हो तो आपका ग़ुस्ल या वजू नहीं होंगा। ग़ुस्ल हमेशा बिना कपड़ो के ही किया जाता हैं और बिना कपड़ो के नाहने से पुरे जिस्म के हिस्से में पानी अच्छी तरह से लग जाता हैं। जिससे गुस्ल अच्छी तरह से पूरा हो जाता हैं। अगर आप जिस जगह नहा रहे है चार दीवारों का पर्दा आप कर रहे है तो उस सूरत में आपको ग़ुस्ल के लिए किसी भी तरह का बदन में कपड़ा रखने की जरूरत नहीं है पर अगरचे आप किसी खुली जगह पर नाहा रहे हो या आपको मज़बूरन ऐसी जगह पर नहाना पड़ रहा हो तो आपको सब से पर्दा करना लाजमी हैं और ऐसी सूरत में आपका ग़ुस्ल बिना कपड़ो के नहीं होंगा ना ही आपका गुसल के साथ वज़ू होंगा। वजू के लिए भी यही बाते हैं अगर आप चार दीवारों में हो तो खुद से ख़ुद का पर्दा जरुरी नहीं आपके गुसल करने से भी वजू के सारे फ़ज़ाइल पुरे अदा हो जाते हैं। लिहाज़ा ऐसी कोई शर्त नहीं की ग़ुस्ल के लिए बदन में कपड़ा रखना जरुरी हैं, बिना कपड़ो के नाहने से भी ग़ुस्ल और वज़ू दोनों हो जाते हैं।
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