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शब-ऐ-कद्र क्या है और इसका महत्व क्या है मुसलमान इसे क्यों बनाते हैं?

  शब-ऐ-कद्र क्या है और इसका महत्व क्या है?मुसलमान इसे क्यों बनाते हैं?
http://sarkareummati.blogspot.com/2020/05/blog-post_20.html
शब-ऐ-कद्र क्या है और इसका महत्व क्या है?मुसलमान इसे क्यों बनाते हैं?

 शबे कद्र क्या है इसका महत्व क्या है मुस्लिम इसे क्यों मनाते हैं? चलिए हम आपको इस पोस्ट में शब-ऐ-कद्र और इसकी फजीलत के बारे में बताते हैं। 
 मुसलमान हर साल रमजान के पाक महीने में शब-ऐ-कद्र मनाते हैं, शब-ऐ-कद्र को और लैलातुल कद्र भी कहा जाता है। शब-ऐ-कद्र इस्लाम में सबसे पवित्र रातों में से एक रात है। शबे कद्र की कोई निश्चित तारीख नहीं है, शबे कद्र इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रमजान के आखिरी 10 दिनों की विषम संख्या वाली रातो जैसे कि 21, 23, 25, 27 और 29 में पड़ती है। शबे कद्र इन रातों में से एक रात होती है लिहाजा मुसलमान शबे कद्र की फजीलत हासिल करने के लिए इन रातों में पूरी रात इबादत करते हैं। इन रातों में विशेष नमाज और दुआएं पढ़ी जाती है।
 
शब-ऐ-कद्र मे कुरान नाजिल हुआ-

शबे कद्र की रात में ही दुनिया में पहली बार कुरान शरीफ को नाजिल(लाया) किया गया। अल्लाह ताला कुरान शरीफ में फरमाता है "शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है इस रात की इबादत का सवाब 83 साल 4 महीने से भी ज्यादा है"। 
 दोस्तों इतनी तो शायद हमारी उम्र भी ना हो, अगर हम इन रातों में सच्चे दिल से तौबा करें और सच्चे दिल से अपने रब को याद करें और सच्चे दिल से इबादत करें तो हमें 83 साल 4 महीने की इबादत का सवाब एक रात की इबादत में ही हासिल हो जाएगा। दोस्तों हम खुशकिस्मत हैं कि अल्लाह ताला ने हमें साल भर में सिर्फ इन पांच रातों में जागने का हुक्म दिया और हमें अपने लिए अपने गुनाहों की मगफिरत के लिए इस रात से नवाजा।

 शब-ऐ-कद्र की फजीलत-
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शब-ऐ-कद्र क्या है और इसका महत्व क्या है?मुसलमान इसे क्यों बनाते हैं?

शबे कद्र की रात में अल्लाह ताला अपने बंदों के तमाम गुनाहों को माफ करता है और उनकी तमाम जायज तमन्नाओं को पूरा करता है। 
 "हजरत अबू हुरैरा से रिवायत है कि मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ने फरमाया की जिसने इस रात सच्चे दिल से पूरी रात इबादत की उसके तमाम गुनाहों को अल्लाह ताला माफ फरमा आएगा"। इस एक रात की इबादत का सवाब 83 साल 4 महीने की इबादत से ज्यादा कहीं ज्यादा है लिहाजा हमें इस रात में नमाज और कुरान पढ़ने के साथ-साथ अल्लाह का खूब जिक्र और अल्लाह से माफी मांगना चाहिए। 

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